सुख-दु:ख
मैं नहीं चाहता था दु:ख मजबूरी में हर्गिज सहना
लेकिन बिना सहे दु:ख, सुख कैसे आ सकता था!
इसलिये कहीं घटना-दुर्घटना होने के ही पूर्व
लगा लेता हूं सारी स्थितियों का अनुमान
स्वयं को कर लेता तैयार बुरी से बुरी परिस्थिति खातिर भी
रखता हूं नहीं अपेक्षा कोई चूंकि, इसलिये
थोड़ी सी भी हो अगर परिस्थिति अच्छी
मुझको बोनस जैसी सुखदायक वह लगती है।
तन-मन से मैं ज्यादा से ज्यादा
दु:ख सहने की कोशिश करता रहता हूं
ईश्वर मुझको ज्यादा से ज्यादा
सुख देने की कोशिश करता रहता है
करता जाता महसूस मन:स्थिति
अपने पूर्वज ऋषियों की
लगती थी कठिन-कठोर तपस्या
लोगों को जो बाहर से
सुख कितना अनुपम उनको वह
करने में हरदम मिलता था!
रचनाकाल : 2 दिसंबर 2023
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