मरुस्थल में फूल
डरता हूं मैं फूलों को हाथ लगाने से
वे इतने नाजुक होते हैैं
हल्का सा भी मेरे हाथों का स्पर्श
उन्हें पहुंचा सकता है चोट
पेड़ पर ही नैसर्गिक लगते हैैं
खुशबू सबको मिल सकती है।
मैं नहीं किसी से कहता फॉलो करें
या कि कविताएं मेरी पढ़ें
कि इससे कविता की मर्यादा कम हो जाती है
इतनी ताकत हो कविता में
वह खुद आकर्षित करे
ढूंढ़ कर उसको लोग पढ़ें
गरिमा तो तभी बनी रह सकती है।
अक्सर मैं करके काम, ठगा जाता हूं पर
लड़ कर हासिल करना अपना अधिकार
मुझे बेशर्मी जैसी लगती है
कर्तव्य निभाता हूं इतनी तन्मयता से
फल खुद ही चल कर आये मेरे पास
मधुरता तभी बनी रह सकती है।
बेशक बेहद है कठिन
बनाना चीजों को रसपूर्ण
कि सूखा इतना है विकराल
हृदय तक सूख गये हैैं लोगों के
पर अगर खिलाना है दुनिया में
मानवता का फूल
नहीं है और दूसरी राह
मरुस्थल को यदि बाग बनाना है
आहुति तो देनी ही !
रचनाकाल : 3 दिसंबर 2023
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