नया साल बनाम नया पल


जब नहीं जानता था कीमत
हफ्तों या कई महीनों की तो कौन कहे
बर्बाद साल मैंने अनेक कर डाले थे
आता था तब भी साल नया हर बार मगर
मैं धूम-धड़ाका करके, मदहोशी में उसे मनाकर
अपने ढर्रे पर जल्दी ही चलने लगता था।
पर जब से जाना मूल्य समय का
साल नहीं मैं माह नया
हर माह मनाया करता हूं
रखता हूं लक्ष्य कि जल्दी ही
हर रोज नया दिन मना सकूं
जो भूल-गलतियां हों दिनभर में
अगले दिन तत्काल पकड़ में आ जायें
जमती जाती है धूल दरअसल जितनी ही
चाहे वह घर हो या हो मन
उतना ही करना साफ कठिन हो जाता है।
मैं सपने देखा करता हूं
जिस क्षण हो गलती कोई भी
अगले क्षण ही आ जाय नजर
परिमार्जन करता रहूं स्वयं का यदि हर पल
जीवन जीना यह शायद होगा तभी सफल।
जो साल हो चुके कई नष्ट
होता तो है पछतावा उसका कभी-कभी
पर करता हूं संतोष, सोच यह
मैं तो फिर भी कुछ सालों में जाग गया
कई लोगों का तो सोते-सोते ही अक्सर
पूरा का पूरा जीवन बीता करता है
जब आंखें खुलती होंगी मरते समय
देख कर यह कि उन्होंने खोया क्या
मर कर भी उनको चैन कभी मिलता होगा!
रचनाकाल : 26-27 दिसंबर 2023

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