आत्म-संघर्ष


कोशिश तो करता पूरी
मन में गुस्सा आये नहीं
मगर यह आ ही जाता है।
होती थी पहले खीझ स्वयं पर
अपनी ही नजरों में
लगने लगता था बेशरम
ढीठ हूं कैसा, कैसे गलती अपनी
बार-बार दुहराता हूं!
उठता था मन में यह भी एक विचार
मान लूं जायज अपना गुस्सा
दे दूं उसे वैधता, टंटा सारा
हो जायेगा खतम
जिंदगी तो कम से कम
होकर के निर्द्वंद्व सदा जी पाऊंगा!
पर जैसे ही कोशिश की
अपनी गलती वैध बनाने की
महसूस हुआ मन में अनगिनती
लगीं उठाने सिर अपना गलतियां
बहस कर लगीं तर्क यह देने
उनको भी आखिर क्यों
नहीं मिले वैधता
इसी पर आधारित?
तब से अपनी कमियों को तर्कों के जरिये
मैं ठहराता हूं सही नहीं
जब तक दम में है दम
अपने दोषों से लड़ता जाता हूं
यह समझ चुका हूं जिस दिन भी
हथियार डाल दूंगा अपनी कमजोरी के आगे
यह मुझ पर हावी होती जायेगी
दुर्गुण घर करते जायेंगे धीरे-धीरे
सौ झूठ बोलने पड़ते हैैं
इक झूठ छिपाने को जैसे
इक गलती के आगे झुकना
बेहद महंगा पड़ जायेगा
सिलसिला पतन का शुरू तभी हो जायेगा।
रचनाकाल : 1-22 दिसंबर 2023

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