जाहि विधि राखे राम...


जब नहीं भरी थी मेरे मन में चतुराई
बचपन में था निर्दोष
हुआ करती थी हसरत
निपुण व्यक्ति बनने की, दुनियादारी में
पर होते-होते निपुण, घाघ बन गया
अनाड़ीपन बचपन का अब आकर्षित करता है।

खतरों का जब तक भान नहीं था पूरा
तब तक बड़े-बड़े दुस्साहस करता रहता था
रोमांचक लगती हैैं अब वे सब यादें
खेला करता था जब आंख-मिचौनी यम से
बच्चों को पर देख उठाते वैसा खतरा
डर जाता हूं, लेकिन बिना उठाये जोखिम
जीवन को कैसे जीवंत बना वे पायेंगे?

जब नहीं जानता था भविष्य
आने वाले खतरों से बेपरवाह
जिंदगी जीता था निष्फिक्र
मगर जब से यह सीखी कला
जानने की भविष्य
रह पाता हूं निश्चिंत नहीं पहले जैसा
अज्ञानीपन पहले का बेहतर लगता है।

है नहीं पता मेरी खातिर, क्या अच्छा है क्या बुरा
छोड़ सब इसीलिये ईश्वर पर जिम्मेदारी
चाहे जैसी मिले परिस्थिति
रहकर अपने प्रति ईमानदार
जीने की कोशिश करता हूं
सुख-दु:ख, यश-अपयश, हानि-लाभ
ईश्वर का सदा प्रसाद मान
सिर-माथे पर सब रखता हूं।
रचनाकाल : 28 नवंबर 2023

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