सही राह पर चलने का अभ्यास
कभी-कभी जिंदगी पकड़ लेती है
इतनी ज्यादा रफ्तार
कि भागते हुए उसके साथ
बहुत आसान होता है फिसल जाना
अनीति की राहों पर।
इतना भी समय नहीं होता
कि तनिक देर रुक कर लगाई जा सके
मन को फटकार
और इसी का फायदा उठा लेते हैैं दुर्विचार।
इसलिये शांतिकाल में
करता हूं कोशिश
साध सकूं मन को
कि क्षण जब भी आये कसौटी का
तो चल सकूं सहज, सही राह पर
परिस्थिति हो कठिन चाहे जितनी भी
प्रलोभन हों चाहे जितने
चलने की खातिर गलत मार्ग पर
कि जिंदगी भर के सतत अभ्यास बिना
होता नहीं सम्भव सहसा छोड़ पाना
राजा हरिश्चंद्र जैसे, सर्वस्व अपना
टिके रहने खातिर सत्य मार्ग पर
त्याग पाना सीता को, राजधर्म मानकर
झेल पाना गांधी जैसी, त्रासदी हरिलाल की।
रचनाकाल : 9 जुलाई 2021
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