रात और दिन
संकट जितना ही गहराता है
लड़ाई भीषण होती है उतनी ही
मजा भी पर आ रहा है उतना ही!
इतना रोमांच तो कभी न था जीवन में!
व्यर्थ ही डरता रहा तकलीफों से
अनदेखी रह जाती एक अद्भुत दुनिया
नहीं कूदता अज्ञात में तो
घूमता रह जाता गोल दायरे में
अदा करना चाहता हूं
शुक्रिया दुख-तकलीफों का
नीरस रह जाता जीवन इनके बिना
वंचित रह जाता देख पाने से
मौत की विकरालता में छिपा है जो
प्रलयंकारी सौंदर्य
अनुपम है शिव का ताण्डव नृत्य
जीवन अधूरा है जिसके बिना
मिट्टी में गहरी जमी जड़ों से ही
होता है वजूद जैसे
गगनचुंबी वृक्षों का
गहरी काली रात की ही कोख से
उदय होगा जीवनदायी सूर्य का।
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