अंधेरे की ओर
भीतर भी और बाहर भी
इतनी वीरान तो कभी नहीं थी दुनिया!
कहां खत्म हो गया सारा जीवन रस?
क्या शुरू हो चुकी है रेगिस्तान की यात्रा?
तप रहा है सूरज आसमान में
और जल रहे हैं पैर धरती पर
चले जा रहे हैं सभी, बियाबान में
नज़र नहीं आ रहा इस बंजर का कोई ओर-छोर
कारवां इतना शांत तो कभी न था!
तो क्या यह मौत की घाटी की यात्रा है?
भय और मायूसी से भरे हुए
चले जा रहे हैं लोग, अनजान दिशा में
इस घनघोर अंधेरी रात की
पता नहीं कब होगी सुबह!
रचनाकाल : 20 अप्रैल 2020
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