कृतज्ञता और कृतघ्नता

जो देता है हम उसे देवता कहते हैं
फिर क्यों हरदम लेने की इच्छा रखते हैं?
जड़ जिन्हें समझते हैं हम
पौधे-पेड़ सभी तो देते हैं
फिर याचक बनकर ही खुश क्यों हम रहते हैं?
हो सकता है हों बुद्धिमान हम
दुनिया में सबसे ज्यादा
खुदगर्ज बनाये लेकिन जो
क्या बुद्धि उसी को कहते हैं?
लेता है कोई काम अगर 
प्रतिदान नहीं देता है तो
अन्यायी उसे समझते हैं
फिर जड़-चेतन सबसे लेकर
मन में कृतज्ञ भी हो न सके
ऐसा कृतघ्न मानव बनकर
कैसे हम सब जी लेते हैं?

(रचनाकाल : 30 अक्टूबर 2025)

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