हमें अपनी बेशुमार क्षमताओं का अहसास करा सकता है एआई !

 ऐसे समय में, जबकि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) को लेकर दुनियाभर में संदेह के बादल छाए हुए हैं, इसके सदुपयोग का एक सुंदर उदाहरण पिछले दिनों देखने को मिला, जब इस पर आधारित मौसम मॉडल के जरिये हमारे देश में 38 लाख किसानों को मानसून से जुड़ी जानकारी दी गई. पारम्परिक सुपर कम्प्यूटर मॉडल के मुकाबले यह इतना सटीक था कि 30 दिन पहले ही इसने न केवल मानसूनी बारिश के आगमन का सही समय बताया, बल्कि बीच में 20 दिन बारिश रुकने की चेतावनी भी दी, जिसे पारम्परिक मॉडल पकड़ नहीं पाए थे. 

पुराने जमाने में यही काम समाज के बड़े-बुजुर्ग किया करते थे. अनुभवी आंखें मौसम की चाल को समय रहते भांप लिया करती थीं और उन्हीं की सलाह पर किसान तय करते थे कि ज्यादा पानी की जरूरत वाली धान जैसी फसल बोनी है या कम पानी में भी तैयार हो जाने वाले ज्वार, बाजरे जैसे मोटे अनाज.   

अतीत के अनुभवों के आधार पर भविष्य का अनुमान लगाना कदाचित ऐसी विशेषता है जो इस धरती पर सभी जीव-जंतुओं में पाई जाती है. भूकंप का सटीक अनुमान हमारी अत्याधुनिक मशीनें अभी तक भले न लगा पाई हों लेकिन कई जीव-जंतुओं में भूकंप आने के कुछ समय पहले ही असामान्य हलचलें दिखाई देने लगती हैं. वर्ष 2004 में जब सुनामी आई थी तो कहते हैं अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में कई आदिवासी अपनी मौखिक परंपराओं और ज्ञान के कारण पहले ही सुरक्षित ऊंचे स्थानों पर चले गए थे. हमने आज तक जितने भी आविष्कार किए हैं, वे सम्भवत: प्रकृति प्रदत्त गुणों की नकल ही हैं. पक्षियों की उड़ान देखकर हमने हवाई जहाज बनाया, चमगादड़ों से सोनार प्रणाली बनाई, दीमक की बॉबी से तापमान नियंत्रण सीखा. शायद लाखों-करोड़ों (या अरबों!) वर्ष पहले अपनी उत्पत्ति से लेकर वर्तमान समय तक की अपनी विकास यात्रा में सभी प्रजातियों ने जो अद्‌भुत उपलब्धियां हासिल की हैं, उन्हें ही आज हम मनुष्य कृत्रिम ढंग से पाने की आकांक्षा रखते हैं!

एआई को आज हम स्वेच्छा से अपनाएं या अनिच्छा से, अब यही हमारी नियति है. बुरे लोग तो इसका दुरुपयोग करने से चूकेंगे नहीं, तो क्यों न हम इसके अधिकाधिक सदुपयोग से ही दुरुपयोग करने वालों को पछाड़ने की कोशिश करें? जिस ज्ञान को हमारे ऋषि-मुनियों ने ध्यान-साधना के जरिये हासिल किया था, उस सच को हम एआई के जरिये पाने की कोशिश क्यों न करें! बचपन से हमें सिखाया जाता है कि चोरी करना, झूठ बोलना, हिंसा, बेईमानी आदि पाप हैं, लेकिन इन अमूर्त चीजों के बारे में एआई के जरिये अगर हम ठोस तरीके से जान सकें कि वास्तव में इनसे किस तरह हानि पहुंचती है तो कोई इन दुर्गुणों से तात्कालिक लाभ पाने के चक्कर में अपना दीर्घकालिक नुकसान क्यों करना चाहेगा? डॉक्टर जब इंजेक्शन लगाता है तो यह जानने के कारण ही हम सिरिंज चुभोने की पीड़ा सह लेते हैं कि उससे हमें फायदा होगा. इसी तरह एआई जब हमें वैज्ञानिक तरीके से समझाएगा कि बड़े फायदे के लिए छोटे-छोटे कष्ट सहने क्यों जरूरी हैं तो क्या हम उन कष्टों को स्वेच्छा से और सहर्ष झेलने के लिए तैयार नहीं हो जाएंगे!

जिस तरह सृजन सृष्टि का नियम है, उसी तरह विनाश भी. दावानल से जंगलों का सफाया हो जाता है लेकिन कुछ ही दिन बाद नवांकुरों से जमीन भर जाती है. इसी तरह प्रलय के बाद भी जीवन बार-बार पनपता रहा है. सम्पूर्ण विनाश में भी हमारी विकास प्रक्रिया के डीएनए किसी न किसी तरह जीवन के नये रूपों में स्थानांतरित हो जाते हैं (इसी प्रक्रिया के कारण हर नई पीढ़ी के बच्चे ज्यादा स्मार्ट दिखते हैं और अरबों वर्षों से प्रजातियां परिष्कृत होती आ रही हैं). लेकिन वर्तमान में हमने अपने बौद्धिक कार्यों का ठेका एआई को दे रखा है (हमारे दिशानिर्देशों पर वह नई रचनाओं का सृजन भी करने लगा है) और  उसमें तो डीएनए ही नहीं होते; ऐसे में प्रलय आने पर उसका सारा ज्ञान क्या लुप्त नहीं हो जाएगा? 

कितना अच्छा हो अगर एआई हमें हमारी क्षमताओं का अहसास करा सके, बता सके कि हम इंसान ही ईश्वर की सर्वोत्तम कृति हैं! तब शायद हम एआई के कृत्रिम खिलौने से खेलना छोड़कर अपनी मेधा के विकास में पुन: अग्रसर हों, ताकि हमारा डीएनए परिष्कृत हो सके! ...और तब हो सकता है हमारे बुजुर्ग वृद्धाश्रमों में न दिखें बल्कि एक बार फिर से ज्ञान के चलते-फिरते भंडार बन जाएं और एआई से भी ज्यादा मेधावी हमारे बच्चे नजर आएं!

(29 अक्टूबर 2025 को प्रकाशित)

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