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Showing posts from May, 2025

जादुई आकर्षण

जब नहीं जानता था जादू के ट्रिक्स मुझे वह चमत्कार सा लगता था लेकिन जैसे ही पता चला मानो सारा भ्रम टूट गया जो मंत्रमुग्ध करता था पहले खेल अचानक ही सारा रस चला गया। इसलिए नहीं अब इच्छा है जादुई रहस्यों को ईश्वर के मैं जानूं  लेने के पहले जन्म या कि हो जाती है जब मृत्यु कहां हम जाते हैं चल जाये यदि यह पता नहीं रोमांच खत्म क्या जीवन का हो जायेगा! जब सबकुछ पहले से हो जाये पता जिंदगी जीने का आकर्षण क्या रह जायेगा? रचनाकाल : 1-28 मई 2025

आदर्श सामने रखने से मिलती है आगे बढ़ते रहने की प्रेरणा

 पिछले दिनों फिटनेस ट्रेनर एश्टन हॉल के मॉर्निंग रूटीन के वायरल हुए वीडियो की सबसे बड़ी खासियत यह नहीं थी कि इसमें वे अपनी दिनचर्या की शुरुआत सुबह चार बजे से पहले करते दिखते हैं, बल्कि यह थी कि इसे सोशल मीडिया पर 74 करोड़ से ज्यादा बार देखा गया. कई लोगों के मन में सवाल उठा कि आखिर दूसरों की जिंदगी में ताकझांक करने के लिए हम इतने उत्सुक क्यों रहते हैं?  दरअसल हम जाने-अनजाने, हमेशा हर चीज से अपनी तुलना करते रहते हैं. समय सभी के पास एक बराबर होता है और हमारे भीतर यह जानने की जिज्ञासा होती है कि समय का उपयोग कोई अगर हमसे बेहतर कर रहा है तो किस तरह से कर रहा है! इसीलिए हम अपने आदर्श गढ़ते हैं ताकि उसका अनुकरण कर सकें. यह परीक्षा में पूर्णांक का पीछा करने के समान है. प्रश्नपत्र जानबूझकर इस तरह बनाए जाते हैं ताकि कोई भी पूरे नंबर हासिल न कर सके. दरअसल शत-प्रतिशत हासिल करते ही हमारे जीवन के लक्ष्य विहीन हो जाने का खतरा रहता है. इसलिए साल-दर-साल बच्चे जैसे-जैसे ऊंची कक्षा में बढ़ते जाते हैं, प्रश्नपत्र तुलनात्मक रूप से कठिन होते जाते हैं. आठवीं कक्षा का छात्र पांचवीं कक्षा में शत-प्रति...

परम्परा : पुरानी ढहने और नई निर्मित नहीं होने की त्रासदी

 नशा किसी भी चीज का हो, बच्चों को वह बहुत जल्दी चपेट में लेता है, ठीक उसी तरह जैसे छोटी उम्र में किसी को कुछ सिखाना बड़ों की तुलना में बहुत आसान होता है. शायद बड़े होनेे के साथ-साथ आदमी लचीलापन खोता जाता है, जबकि बचपन मिट्टी के लोंदे के समान होता है, जिसे कुशल कुम्हार मनचाहा आकार दे सकता है.  इसीलिए बच्चों को मोबाइल और नशे से दूर रखने के लिए केरल के पत्तनमिट्टा जिले की नेदुंबपुरम ग्रामपंचायत ने ‘कुट्टीकेयर’ नामक जो अनोखी मुहिम शुरू की है, वह देश के सभी गांवों को दिशा दिखा सकती है. इस मुहिम के अंतर्गत गांव के आठवीं से बारहवीं कक्षा तक के बच्चे वहां के बीमार और बुजुर्ग लोगों से मिलते हैं और उन्हें हिम्मत बंधाते हैं कि वे जल्दी ठीक हो जाएंगे. बदले में उन्हें बुजुर्गों के अनुभव से ऐसी-ऐसी बातें सीखने को मिलती हैं जो किताबों में नहीं मिल सकतीं. इंदौर और पुणे में भी कहते हैं बच्चों की स्मार्टफोन की लत छुड़ाने के लिए इसी तरह के रचनात्मक प्रयास किए जा रहे हैं.  ग्रामीण परिवेश से संबंध रखने वाले पुरानी पीढ़ी के लोगों को पता होगा कि पहले स्कूलों में शनिवार का दिन सांस्कृतिक कार्यक्...

सिर्फ लेने में ही नहीं, देने में भी मिलता है अनुपम सुख

 दुनिया में लेने का सुख तो सब जानते हैं, पर ऐसा क्यों होता है कि कुछ लोगों को देने में भी खुशी मिलती है?  कर्नाटक के कोडगु जिले के कुशल नगर कस्बे में 72 वर्षीय ऑटो चालक गुलजार बेग अपने ऑटो में हमेशा तसला-फावड़ा रखते हैं और सवारी लाने-ले जाने के दौरान सड़क पर जहां भी गड्ढा दिखता है उसे भरने लगते हैं. यह काम वे पिछले 51 साल से करते आ रहे हैं और अब तक 60 हजार से ज्यादा गड्ढे भर चुके हैं. दरअसल 1974 में गड्ढों की वजह से जब उन्हें पीठ दर्द शुरू हो गया तो नगर पालिका में शिकायत की, लेकिन अधिकारियों से जब फंड की कमी का रोना सुनने को मिला तो उन्होंने खुद ही फावड़ा उठा लिया.  फरीदाबाद की संस्था ‘द डिवाइन मिशन’ से जुड़े लोग वीकएंड में छुट्टियां मनाने या मौजमस्ती के बजाय गरीब और असहाय लोगों की मदद करते हैं. वर्ष 2007 में शुरू हुई इस संस्था से जुड़े लोगों में कोई वकील है तो कोई सीए, कोई बैंक मैनेजर है तो कोई बिल्डर, साइंटिस्ट, इंजीनियर, डॉक्टर, किसी कंपनी के सीईओ या डायरेक्टर. यानी सभी पढ़े-लिखे और प्रोफेशनल लोग हैं. खुद उसके संस्थापक राजकुमार फूड साइंटिस्ट हैं. छुट्टियों के दिन ये गर...

मशीनों के मनुष्य बनने की आशा और मनुष्यता के खात्मे की आशंका

 आर्टिफियल इंटेलिजेंस (एआई) से पैदा वाले खतरों की आशंकाओं के बीच अब एआई ने ही चेतावनी दी है कि यह मानवता को हमेशा-हमेशा के लिए नष्ट कर सकता है. गूगल की एआई रिसर्च कंपनी डीपमाइंड ने एक नई रिपोर्ट में चेतावनी दी है कि इंसानों जैसी आर्टिफिशियल जनरल इंटेलिजेंस (एजीआई) 2030 तक विकसित हो सकती है और अगर इसे सही तरीके से नहीं संभाला गया तो यह मानवता को हमेशा के लिए खत्म कर सकती है.  एजीआई के बारे में कहा जा रहा है कि यह इंसानों की ही तरह सोचेगा, सीखेगा और अपने फैसले खुद ले सकेगा. आज के एआई को हर नए टास्क के लिए फिर से ट्रेन करना पड़ता है, जबकि एजीआई बिना दोबारा प्रोग्राम किए खुद ही नए काम सीख सकेगा. यह जटिल परिस्थितियों में भी इंसानों जैसी सोच व समझ के आधार पर फैसले ले सकेगा. सम्पन्न मनुष्यों को हमेशा से दूसरों की सेवा की जरूरत पड़ती रही है. गुलामी प्रथा खत्म हुए भी अभी बहुत समय नहीं बीता है. राजा-महाराजाओं का काम दास-दासियों के बिना नहीं चलता था. ऐसा नहीं है कि कुछ सौ साल पहले की तुलना में हम मनुष्य आज इतने ज्यादा विवेकशील हो गए हैं कि अपने जैसे ही दूसरे मनुष्यों को गुलाम बनाकर रखना ...