डर
बेचैनी इतनी ज्यादा है
पागल ही कहीं न हो जाऊं
डर लगता है।
दुनिया में व्याकुल रहने के
कारण पर इतने ज्यादा हैं
सो जाऊं लेकर अगर दवा
बेचैनी खत्म न हो जाये
आदत न कहीं सुख से रहने की पड़ जाये
इससे ज्यादा डर लगता है।
रचनाकाल : 9 मार्च 2025
नमस्कार, एकाकी ही चलता रहा पिछले 30 वर्षों से, काव्य पथ की यात्रा पर । 1990 से कविताएं लिखना शुरू करने के बाद, कभी जरूरत ही महसूस नहीं हुई छपने-छपाने की; स्वांतः सुखाय ही लिखता रहा । हालांकि इस बीच भाई पुष्पेंद्र फाल्गुन के सौजन्य से वर्ष 2012 में कविता संग्रह 'मां के लिये ' छप कर आया । अब लगता है कि लोगों के साथ अपनी भावनाएं साझा करनी चाहिए । अस्तु रोज जो कविताएं लिखूंगा, वे आप को इस ब्लॉग पर पढ़ने को मिलेंगी और कभी-कभार समय मिलने पर पुरानी कविताएं भी--- 9922427714
बेचैनी इतनी ज्यादा है
पागल ही कहीं न हो जाऊं
डर लगता है।
दुनिया में व्याकुल रहने के
कारण पर इतने ज्यादा हैं
सो जाऊं लेकर अगर दवा
बेचैनी खत्म न हो जाये
आदत न कहीं सुख से रहने की पड़ जाये
इससे ज्यादा डर लगता है।
रचनाकाल : 9 मार्च 2025
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