डर
बेचैनी इतनी ज्यादा है
पागल ही कहीं न हो जाऊं
डर लगता है।
दुनिया में व्याकुल रहने के
कारण पर इतने ज्यादा हैं
सो जाऊं लेकर अगर दवा
बेचैनी खत्म न हो जाये
आदत न कहीं सुख से रहने की पड़ जाये
इससे ज्यादा डर लगता है।
रचनाकाल : 9 मार्च 2025
बेचैनी इतनी ज्यादा है
पागल ही कहीं न हो जाऊं
डर लगता है।
दुनिया में व्याकुल रहने के
कारण पर इतने ज्यादा हैं
सो जाऊं लेकर अगर दवा
बेचैनी खत्म न हो जाये
आदत न कहीं सुख से रहने की पड़ जाये
इससे ज्यादा डर लगता है।
रचनाकाल : 9 मार्च 2025
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