विरासत उत्सव की


क्या हुआ प्राकृतिक रंग मिलते नहीं
केमिकल ही कलर खेल लो दोस्तो
ये विरासत कोई ऐसी-वैसी नहीं
होली जी-भर मनाते चलो दोस्तो।

अब न फगुहार पहले के जैसे रहे
टोलियों में जो जाते थे हर एक घर
छेड़ते थे जोगीड़ा की धुन सऽरऽरऽर
अब न फसलें कोई काटता हाथ से
सारे बच्चे चले गये शहर काम से
फूल खिलते हैं टेसू के अब भी मगर
रंग उनसे बनाता है कोई नहीं
कुछ भी तो पहले जैसा बचा अब नहीं!
फिर भी होली-दिवाली के त्यौहार ये
चलते ही आ रहे अनगिनत साल से
क्या पता ये भी दिन कितने टिक पायेंगे
पेड़ जर्जर न कब जाने ढह जायेंगे
बन के यादें ही स्मृतियों में रह जायेंगे!

ये हैं त्यौहार मामूली कोई नहीं
इनमें कितने युगों की हैं यादें बसीं
देंगे सम्बल कठिन ये समय में सभी
हो सके तो बचा लो इन्हें दोस्तो!

रचनाकाल : 14 मार्च 2025

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