पानी जब अमृत बनता है
जब तक था अनुभवहीन
किताबी ज्ञान बहुत था
ठोस नहीं पर लगता था
पढ़-सुनकर यह तो जान लिया था
कैसे तैरा जाता है
पानी में उतरा नहीं मगर जब तक
तब तक डर लगता था।
मैं सीख गया गायन-वादन
संगीत बहुत प्रिय लगता था
संघर्ष नहीं था लेकिन जब तक जीवन में
गीतों में कशिश न आ पाई
मीठे में हल्का नमक कहीं कम लगता था।
इसलिये सफलता भी मुझको
जब मिलती बहुत सरलता से
फिर भी मेहनत अतिशय करके
मैं वजन डालने की उसमें
कोशिश अधिकाधिक करता हूं
वह ताकि खोखली नहीं लगे।
सच तो यह है सुख मिलता नहीं संपदा में
वरना सब पूंजीपति ही सदा सुखी रहते
जो जितनी मेहनत करता है
सुख उतना उसको मिलता है
जब पेट भरा हो, हलुआ-पूड़ी भी उतना
स्वादिष्ट नहीं तब लगता है
भूखे को सूखी रोटी में जो मिलता है।
इसलिये नहीं जब पानी मीठा लगता है
मैं शर्बत पीने की बजाय
अपने भीतर की प्यास
तेज करने की कोशिश करता हूं
जब निकल रहे हों प्राण विकल हो तेज धूप में
एक घूंट जल भी तब अमृत लगता है।
रचनाकाल : 9 मार्च 2025
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