पीड़ा का सौंदर्य
सुख में तो सब हंस लेते है
पर दु:ख में जो हंसने की क्षमता रखते हैं
वे ही आकर्षित करते हैं
जो गीत कसक पैदा करते
वे गहरी पीड़ा सहने वाले
गायक के कंठों से निकला करते हैं।
मैं खूब अलंकृत भाषा में
लिखने की कोशिश करता था
पर जान नहीं आ पाती थी
अब जो भी लिखना होता है
जीने की कोशिश करता हूं
जो भी लिखता, जीवंत वही बन जाता है।
फूलों जैसी सुंदरता मैं
जब कृत्रिम ढंग से पाता था
वंचित सुगंध से रहता था
अब भीतर से सुंदर बनने का
जतन हमेशा करता हूं
कस्तूरी मृग सी खुशबू फैला करती है।
रचनाकाल : 20 फरवरी 2025
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