देने का सुख

मैं नहीं चाहता मिले सफलता हरदम ही
पर कोशिश पूरी करूं नहीं तो गहरी पीड़ा होती है
सच तो यह है होने पर भी हकदार
नहीं अधिकार मिले तो कर्जदार ईश्वर भी
ऐसे लोगों का हो जाता है
राजा बलि हों या शिबि, दधीचि जैसे दानी
दाता भी उनके आगे शीश झुकाता है
जो परम दानियों को सुख मिलता परम
अगर बस एक बार मिल जाय झलक
फिर होगा ऐसा कौन भला
जो उसे न पाना चाहेगा?
दरअसल दौड़ते देख बाकियों को अक्सर ही
हम भी सोचे बिना दौड़ने लगते हैं
जिस तरह आज कुछ पाने की ही लगी होड़
यदि दिशा बदल जाये उसकी
तो देने की ज्यादा से ज्यादा, दौड़ शुरू हो जायेगी
इसलिये सफलता से स्वेच्छा से वंचित हो
देने के सुख को दिखा-दिखा
लेने वाले लोगों को
ललचाने की कोशिश करता हूं
देने का सुख पाने को प्रेरित करता हूं।

रचनाकाल : 25 फरवरी 2025

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