अंतहीन इंतजार

मरते हैं जिसके परिजन या फिर प्रियजन
उसको दु:ख तो गहरा होता है
पर गुम जाते हैं जिसके
कैसे तिल-तिल कर वह मरता है
क्या बिना स्वयं पर गुजरे कोई जानेगा!
जो लोग कुम्भ में भगदड़ में मर गये
अश्रुपूरित नयनों ने उनको श्रद्धांजलि दे दी
पर पता नहीं चल पाया जिनका
इंतजार क्या उनका प्रियजन
नहीं करेंगे जीवन भर?
सरकारों की तो आदत है
आंकड़े छिपाने की हरदम
क्या पता रेत में दबा दी गई
या गंगा में बहा दी गई हों जाने कितनी लाशें
छवि ताकि साफ-सुथरी शासन की दिखे
मगर जो लोग हजारों भटक रहे हैं
फोटो लेकर अपनों की
भरपाई तो दु:ख की हो सकती नहीं
किंतु भौतिक मुआवजे से भी तो
वंचित ही वे रह जायेंगे!


रचनाकाल : 1 फरवरी 2025

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