मुफ्तखोरी के खिलाफ

जीवन का लक्ष्य बनाया था
मैंने भी जनसेवा ही
लेकिन मुफ्त बांट कर चीजें
जब नेता करते हैं जनसेवा
तो मुझे अटपटा लगता है
इसलिये छोड़ कर राजनीति
मैं अलग राह अपनाता हूं
संगीत, गीत या चित्रकला
कविता के जरिये लोगों के
मन को समृद्ध बनाता हूं
कोशिश करता हूं जगा सकूं
लोगों के भीतर स्वाभिमान
वे ताकि मुफ्त की चीजों के
सारे लालच को ठुकरा दें
जो उन्हें बनाना चाह रहे हैं मुफ्तखोर
उनसे देने के लिये काम की मांग करें
नेताओं के छल-छद्‌मों का
यह चक्रव्यूह तब टूटेगा
वे नहीं किसी को बना सकेंगे बेवकूफ
बंदर की तरह न बन करके मध्यस्थ
समूची रोटी वे जनता की खुद खा पायेंगे।


रचनाकाल : 3-5 जनवरी 2025

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