डर के आगे जीत

मैं अक्सर सोचा करता था
जो पटरी करते पार
ट्रेन आने पर कुचले जाते हैं
क्या दिख जाने पर ट्रेन
समय इतना भी पास नहीं होता
कुछ फुट भी दूर चले जायें!
पर एक बार जब खेतों में
मैं फसल बचाने खातिर अपनी
भगा रहा था सांड़
पलट कर दौड़ा मेरे पीछे वह
तब भय से जड़ हो गया
भाग मैं एक कदम भी नहीं सका
रुकते ही मेरे वह भी तो रुक गया
मगर यह सीख मुझे दे गया
अगर मन में भय हावी हो जाये
तो हो जाते हैं हम तुरंत असहाय
नहीं संकेत पहुंच पाते दिमाग के
हाथ-पैर तक अपने ही
इसलिये कहा जाता शायद
जो डर जाता, मर जाता है
जीवन तो निर्भयता से ही
जीने वाला जी पाता है!
रचनाकाल : 9 जनवरी 2025

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