मरुस्थल में जीवन

जब तन-मन रहता स्वस्थ
तभी दु:ख-कष्ट सहन कर पाता हूं
दु:ख सहते ही तन-मन से लेकिन
जर्जर होता जाता हूं!
यह सच है रेगिस्तानों में
बस नागफनी ही उगती है
पर सहकर भी घनघोर कष्ट
मैं नहीं चाहता हूं कि कभी भी
बच पाने की खातिर कांटेदार बनूं।
अस्तित्व स्वयं का लेकिन कायम रखने को
जब यही विकल्प बचे अंतिम
तब बहुत कठिन हो जाता है
कोई भी निर्णय ले पाना।
बलिदान स्वयं का कर पाना
होता तो है आसान नहीं
पर बनकर शुष्क-कठोर
जिंदगी जीने का भी क्या तुक है?
रचनाकाल : 2 दिसंबर 2024

Comments

  1. पर बनकर शुष्क-कठोर
    जिंदगी जीने का भी क्या तुक है?

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