लो, फिर आ गया नया साल! पिछले नये साल की यादें इतनी ताजा हैं कि ऐसा लगता है अभी कुछ दिनों पहले ही तो हमने उसका स्वागत किया था! तो क्या दिन बहुत तेजी से बीत रहे हैं? किशोरावस्था में नये साल का बेसब्री से इंतजार रहता था. नए-नए संकल्प लिए जाते थे, जिनका अगर पूरे साल पालन होता तो हमें एक आदर्श मनुष्य बनने से कोई नहीं रोक सकता था. दुर्भाग्य से हमें पता ही नहीं चल पाता था कि नये साल का नया दिन बीतते ही स्व-अनुशासन के लिए बनाए गए वे नियम कब टूट जाते थे! और इसका अहसास फिर नया साल आने के समय ही होता था. लेकिन उम्र के उस दौर में हम हार कहां मानते थे! हर नए साल पर उसी उत्साह के साथ नए नियम बनाते, उसी गफलत के साथ वे कुछ दिन बाद टूटते और अगले साल फिर से बनते. तो क्या समय बदल गया है? समय तो शायद हमेशा एक जैसा रहता है, उम्र के अलग-अलग दौर में हम ही बदलते जाते हैं. बच्चे और युवा तो आज भी उसी उत्साह के साथ नया साल मनाते हैं, बीते कल के हम बच्चे ही शायद आज उद्दाम वेग वाली अल्हड़ पहाड़ी जलधारा के बजाय मैदानों की शांत प्रवाह वाली नदी जैसे बन गए हैं, जो भावनाओं की रौ में आसानी से बह नहीं पा...
अब होते ही अनुभवी
ReplyDeleteजोश, उत्साह की कमी खलती है!