सम्पूर्णता की चाह


जब अनगढ़ था
ज्यादा से ज्यादा बन विनम्र
अपनी कमियां ढंकने की कोशिश करता था
पर जैसे-जैसे प्रौढ़ हुआ, परिपक्व बना
घटता ही गया लचीलापन
हो गया ठोस, जैसे होता है अहंकार
अब टूट भले ही जाऊं
लेकिन झुक पाता हूं नहीं
सुगढ़ हो चमकदार बन गया
मधुरता थी पर जो अनगढ़ता में
वह गायब होती गई
नियति यह कैसी है
जब तक था अनुभवहीन
बहुत अनुभव आकर्षित करता था
अब होते ही अनुभवी
जोश, उत्साह की कमी खलती  है!
रचनाकाल : 29 दिसंबर 2024

Comments

  1. अब होते ही अनुभवी
    जोश, उत्साह की कमी खलती है!

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