कर्मयोग

सुख-दु:ख तो आते-जाते हैं
सिक्के के वे दो पहलू हैं
दिन-रात सरीखे होते हैं
इसलिए नहीं यह ख्वाहिश है
शिखरों पर हरदम बना रहूं
गुमनामी की गहरी खाई
से भी भयभीत नहीं होता
बस इतना ही भय लगता है
होकर निराश नाकामी से
कोशिश में आये कमी नहीं
जिस तरह फोड़ कर धरती को
जड़ गहरी बीज जमाता है
तब जाकर कोई पेड़
गगनचुम्बी ऊंचाई पाता है
वैसे ही असफलताओं पर
निर्भर रहती हैं सफलताएं
जो कभी हारता नहीं
जीत भी कभी नहीं वह पाता है।
इसलिये हताशा से बचने को
अनासक्ति अपनाता हूं
हों अच्छे दिन या बुरे
सदा निष्काम भाव से
कठिन परिश्रम करता हूं
फल चाहे जो भी मिले मुझे
खुश हर हालत में रहता हूं।
रचनाकाल : 1 दिसंबर 2024

Comments

Popular posts from this blog

सम्मान

गूंगे का गुड़

सर्व दल समभाव का सपना और उम्मीद जगाते बयान