मेहनत की महिमा


जब सागर इतना तपता है
बन भाप हवा में उड़ता है
तब मानसून का बादल बनकर
पानी बरसा करता है।

जब चिल्ला जाड़ा पड़ता है
तब ही मिठास आ पाती है
वरना कश्मीरी सेब
भुसभुसी बनकर ही रह जाती है।

चौदह वर्षों का सह कर ही वनवास
राम भगवान रूप बन पाते हैं
वन-वन में मारे फिरते हैं जो पाण्डव
वे ही युद्ध महाभारत का जय कर पाते हैं।

जड़-चेतन जो भी जितना ज्यादा सहता है
उतना ही अधिक निखरता है
दु:ख-कष्ट, परिश्रम को ही हरदम
समय परिष्कृत करता है। 

आसानी से यदि इसीलिये
जब मुझको कुछ भी मिलता है
करके मेहनत घनघोर, जरा
असफलता हासिल करता हूं
जो मिली सफलता मुझे ताकि
खोखली नहीं होने पाये।
रचनाकाल : 17 नवंबर 2024

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