हार या जीत ?
लेने का ही जब सुख हम जाना करते हैं
तब देने में अतिशय कंजूसी करते हैं
पर देने का सुख जिनको होता पता
किसी से लेने में शर्मिंदा अनुभव करते हैं।
वे भोले भले रहे हों लेकिन बेवकूफ थे नहीं
जान भी बाजी पर जो लगा
वचन का अपने पालन करते थे
जो हानि उठाकर भी अपनी
सच के ही पथ पर चलते थे
सुख अनुपम उनको मिलता था
ईमानदार रह करके कष्ट उठाने में
जो कभी नहीं मिल सकता बेईमानों को।
जो सीधे इतने ज्यादा हैं
ठग ले कोई या कर ले छल
उस पर भी यदि खुश रहते हैं;
जो छलता है या ठगता है
फिर भी उद्वेलित रहता है
तो जीत भला है किसकी इसमें
और हार यह किसकी है!
रचनाकाल : 17-18 नवंबर 2024
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