बचपन और सयानापन

मैं था बचपन में जिद्दी बहुत ही बड़ा
ठान लेता था जो, टस से मस उससे होता नहीं था कभी
पर दिखाई किसी ने न मुझको दिशा
मेरा हठ जो लगन बनने का बीज था
वो कुसंगत में लत बन के ही रह गया!
गाय दुहता था जब, करते तारीफ सब
मैं हूं माहिर अधिक दूध दुह पाने में
मुझको क्यूं ये किसी ने बताया नहीं
भूखा रहता है बछड़ा बिना दूध के!
था चपल इतना ज्यादा कि पल भर में ही
पेड़ की फुनगियों तक पहुंच जाता था
शूरता पर दिखाने के चक्कर में जब
तोड़ लेता था फल पक्के-कच्चे सभी
तब किसी ने ये समझाया ही क्यों नहीं
तोड़ना फल को कच्चा नहीं चाहिये!
जब था छोटा, दिवाली के त्यौहार पर
खेलता था बमों और बंदूक से
कल्पना ही नहीं तब किया ये कभी
जो सयाने हैं बंदूक-बम से वे भी
खून से लोगों के खेलते हैं होली!
मैं हूं व्याकुल कि बचपन में मिलती दिशा
मैं भी दुनिया में इंसान बन बेहतर
बेहतर एक दुनिया बना सकता था
झूठे अभिमान से दूर रह सकता था!
इसलिये खुद को रखता हूं हरदम सजग
हम सयानों की नादानियों से कहीं
कोई बचपन कहीं फिर न बर्बाद हो
हम सयाने तो अच्छे नहीं बन सके
पर नई पीढ़ियों पर हमारी कुसंगत की छाया न हो!
रचनाकाल : 29 अक्टूबर 2024

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