विष-बीज
फल खाते-खाते मीठा सहसा
आया मुझको ध्यान
लगाये पुरखों ने फलदार वृक्ष
उपभोग कर रहा जिनका मैं
पर मैंने क्या निर्माण किया
क्या वंशज मेरे युद्धों का फल खायेंगे?
होती दुनिया में फलीभूत हर चीज
कर्म कुछ देरी से तो
कुछ जल्दी फल देते हैं
हर कालखण्ड का दुनिया में
होता अपना इतिहास
हजारों वर्ष पूर्व जो बने धर्म
फल उनमें अब तक लगते हैं
हमने भी यदि परमाणु युद्ध लड़ लिया
नहीं क्या उसका जहरीला फल
हम लोगों के वंशज
भुगतेंगे सैकड़ों-हजारों वर्षों तक!
कुछ फल यदि सड़े निकलते हैं
प्राचीन धर्म के वृक्षों के
करते हम आलोचना पुरानी पीढ़ी की
बो रहे मगर जो बीज युद्ध के वृक्षों के
उसके तो सारे फल ही जहरीले होंगे
जिस नफरत से तब देखेंगे वंशज हमको
हम जहां कहीं भी होंगे
खुद को माफ कभी कर पाएंगे?
रचनाकाल : 31 अगस्त 2024
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