शत्रुता में सौहार्द


चाहता तो हर्गिज नहीं
कोई मेरा शत्रु बने
लेकिन गलतफहमी से
या कि मतभेद से
पाल लेते कई लोग शत्रुता
फिर भी जो करते हैं दुश्मनी
उनसे भी रखता नहीं दुश्मनी
खोजता हूं कारणों को
कितने भी गहरे मतभेद हों
दृष्टिकोण लेकिन समझ लेता जब
अपने प्रतिपक्षी का
गायब हो जाती है कट्टरता
पैदा हो जाती सहानुभूति
जैसे कुम्हार भीतर हाथ रख
गढ़ता है कुम्भ को
रखकर संवेदना
सम्भव हो जाता है
होकर मतभेद भी
भीतर से जीत लेना शत्रु को
कि लड़ते रहे जिससे बरसों-बरस तक
दक्षिण अफ्रीका में गांधीजी
जिंदगी भर बनी रही मित्रता
उसी जनरल स्मट्स से
लड़कर भी अंग्रेजी राज से
मीरा महन, एंड्रयूज जैसे अंग्रेज कई
साथ रहे जीवनभर गांधी के।
रचनाकाल : 25-26 सितंबर 2024

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