संबल पुरखों का
तब करके मदद किसी की
लेना यश मुझको शर्मिंदा करता है
भरसक कोशिश करता हूं इसीलिये
कि आये नहीं सामने नाम
किसी को पता नहीं चलने पाये
था मददगार वह कौन जरूरतमंदों का।
ख्वाहिश बस इतनी होती है
जब घर की विकट परिस्थिति हो
तब भी मुझसे जो ज्यादा हो असहाय
काम आने से उसके नहीं डरूं
मुझको दधीचि, शिबि, कर्ण सरीखे
परम दानियों के किस्से रोमांचित करते हैं।
मैं झूठ बोलता नहीं, सहज स्वाभाविक ही
कह देता कोई मगर सत्यवादी तो डर जाता हूं
होने को हो यदि कोई भारी नुकसान
जरूरत पड़ने पर भी झूठ बोलने की
सच पर ही अड़ा रहूं, क्या इतनी क्षमता रखता हूं?
मैं हिल जाता हूं सुनकर राजा हरिश्चंद्र के किस्से को
पर अगर युधिष्ठिर जैसे राजा सत्यनिष्ठ भी
चरम क्षणों में टिके नहीं रह पाये तो
मेरी आखिर क्या हस्ती है!
इसलिये सदा ही अहंकार से डरता हूं
जिस गुण का भी होने लगता अभिमान
बहुत आगे हैं जो उस गुण में मुझसे लोग
स्मरण उनका करने लग जाता हूं।
रचनाकाल : 8 सितंबर 2024
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