शब्दों में अर्थ भरते कर्म
वाणी को ही मैं पहले सारे
मुद्दे सुलझाने का उत्तम
माध्यम माना करता था
करते जब लोग कुतर्क
मुझे लगता कि कमी
शायद मेरे अंदर ही है
जो सही तरीके से लोगों को
समझा पाता नहीं, मगर
यह भेद बहुत दिन बाद खुला
जो नहीं चाहता समझे
चाहे कितना भी सिर पटकें हम
हरगिज न उसे समझा सकते
सच तो यह है कि बिना कर्मों के शब्दों का
कोई भी मोल नहीं होता
कहने वाले के कर्मों से ही
शब्दों को बल मिलता है
इसलिये वाक्-चातुर्य दिखाने
में अब पड़ता नहीं
साधने की कोशिश
करता हूं अपने कर्मों को
होते हैं मन के भाव शुद्ध
तो मामूली शब्दों का भी
होता है असर बहुत ज्यादा
दरअसल ध्यान लोगों का शब्दों के बजाय
कहने वाले की नीयत पर ही रहता है।
रचनाकाल : 12 सितंबर 2024
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