इंसानों में हैवान
मैं रह जाता हूं सन्न देखकर
दुनिया में अपराधों को
पर करता जब प्रतिकार
भुगतना पड़ता है उसको ही
जो पहले से पीड़ित होता है।
सदमा तो तब लगता है
जब अपराधी कोई
मुझ जैसा ही सभ्य
दिखाई देने वाला मिलता है
कल्पना नहीं कर सकते, पर
जो दिन में उजले वस्त्र पहन
चिंता समाज के गिरते स्तर की करता है
उसका ही रूप निशाचर जैसा
दिन ढलने पर गहन रात में दिखता है!
इसलिये नहीं अब करता हूं हड़ताल
कि दिक्कत हो न मरीजों, लोगों को
आक्रोश दिखाता नहीं, मचाकर तोड़फोड़
सरकारी जिसको कहते हैं
नुकसान दरअसल जनता का वह होता है
बस कोशिश करता मेरे जैसा दिखता जो इंसान
अंधेरा होते ही हैवान रूप बन जाता है
मैं भी न कहीं उसके जैसा ही बन जाऊं
इसलिये स्वयं की ही हर पल
करता रहता हूं निगरानी
अब नहीं दीखते अलग-अलग कौरव-पाण्डव
सज्जन में ही दुर्जन का भी
अब अक्स दिखाई देता है।
रचनाकाल : 20 अगस्त 2024
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