अपूर्णता
शक्ति थी अपार जब शरीर में
मिल न पाई थी दिशा
कि कैसे सदुपयोग करूं
जब मगर दिशा मिली
सुनहरी उम्र ढल गई
बची-खुची बटोर अपनी शक्तियां
किसी तरह से इंच-इंच बढ़ सकूं
यही बस एक दीखता उपाय है।
सही कहा था अपने अंतिम दिनों में
बहुमुखी कलाओं के धनी रहे टैगोर ने
कि साधने की कोशिशों में बीत गई जिंदगी
सुर मगर सधे तो मृत्यु सामने खड़ी मिली!
ये कैसा है नियम विचित्र सृष्टि का
हरेक चीज में दिखाई देती है अपूर्णता
कि मृग मरीचिका के पीछे भागना ही
हम सभी की नियति है!
रचनाकाल : 14 अगस्त 2024
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