कोमल और कठोर


कभी-कभी जब मन व्याकुल हो जाता है
पत्थरदिल जैसे लोगों से सिर फोड़
बहुत थक जाता हूं
तब लगता है मृदुता की मेरी
हार अवश्यम्भावी है
कितनी भी कर लूं कोशिश
जीतेगी कठोरता ही हरदम
हो जाता हूं बेहद हताश तब
शक्तिहीन हो जाता हूं।

होता हूं पर जब सुस्थिर
तब यह लगता है
पानी ने यदि सोचा होता
कब तक पत्थर से आखिर सिर टकराऊंगा
तब रेत बना पाता क्या वह चट्टानों को?
बेशक कितना भी समय लगे
पर जीत अंत में कोमलता की होती है
जड़ के आगे यदि जीव हार मानेगा तो
वह भी जड़ पत्थर जैसा ही बन जायेगा।
रचनाकाल : 12 जुलाई 2024

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