नकारात्मक से सकारात्मक
रखता था जब तक सोच नकारात्मक अपनी
हर चीज मुझे दु:ख देती थी
हरदम चिंतातुर रहता था
सुख आता तो भय लगता था
अब दु:ख भी आगे आयेगा
कितना भी कोई गुणी व्यक्ति हो
सबके भीतर का दुर्गुण
मैं खोज निकाला करता था।
जब देखा लेकिन आईना
तब पता चला
मन-दर्पण मेरा धुंधला था
जो दाग लगे थे उसमें
उससे दागदार सब चीज दिखाई पड़ती थी
अब जितना ज्यादा रगड़-रगड़ कर
मन को करता साफ
स्वच्छ उतना सबका प्रतिबिंब दिखाई पड़ता है
कितना भी कोई बुरा व्यक्ति कहलाता हो
गुण उसके भीतर खोज निकाला करता हूं
दु:ख आते ही हर्षित होता
अब सुख भी आगे आयेगा।
जब तक रखता था सोच निराशावादी
खुद भी रहता हरदम दु:खी
दूसरों को भी दु:ख पहुंचाता था
जब से दामन पकड़ा है लेकिन आशा का
उम्मीद मुझे हर जगह दिखाई पड़ती है
खुद भी प्रसन्न रहता हूं
औरों को भी मेरी संगत में सुख मिलता है।
रचनाकाल : 17-18 जुलाई 2024
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