असली-नकली
निपट दुनियादारी में
जब तक अनाड़ी था
ठगा गया कई बार
लेकिन फिर सीख गया
कोशिश अब जैसे ही
करता कोई ठगने की
तुरत भांप लेता हूं
कोई भी जरूरतमंद
करता जब याचना
सीधे टरका देता हूं।
सोचता पर कभी-कभी
जिसको ठग समझा था
सचमुच ही कहीं तो नहीं
वह जरूरतमंद था!
लेकिन ठगहारों ने
बनकर बहरूपिया
छोड़ा ही उपाय नहीं कोई भी
भेद असली-नकली में करने का
नकली के कर्मों का
असली भुगतता है खामियाजा।
इसीलिये होने के बाद भी
निपुण दुनियादारी में
जोखिम उठाकर भी
खुद के ठगे जाने का
करना विश्वास नहीं छोड़ता
असली के साथ ताकि
होने न पाये ज्यादा अन्याय
दुनिया में बची रहे
थोड़ी सी मनुष्यता।
रचनाकाल : 6 जुलाई 2024
Comments
Post a Comment