सपना या यथार्थ!
सपने में लेती हैं
जन्म चंद पंक्तियां
सोचता हूं लिख लूंगा
जागने पर सुबह, पर
जागते ही सपना भूल जाता हूं
इतना बस याद रह जाता है
कुछ तो उसमें ऐसा तिलिस्म था
हो गया था मंत्रमुग्ध
खो गई है जैसे अनमोल चीज।
जागते हुए भी लेकिन
कभी-कभी ऐसा लगने लगता है
छूटता ही जाता है हाथ से
वह जो अनमोल है
इतने सस्ते मोल पर तो
नहीं जानी चाहिए थी जिंदगी!
होता महसूस कहीं धुंधला सा
अपने ही हाथों से
खुद को ठगता जाता हूं
हीरा बन सकता था
कांच लेकिन बन कर रह जाता हूं
तय नहीं कर पाता हूं
खो गई जो चीज बेशकीमती
सपना वह था या यथार्थ है!
रचनाकाल : 16 जून 2024
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