कांक्रीट के जंगल
गांवों का देख कठिन जीवन
अपनी पीढ़ी के बाकी लोगों जैसे ही
मैं शहर चला तो आया था
महसूस मगर अब होता है
बस गांव नहीं मर रहे
उन्हीं के साथ हमारे मन में भी
कुछ मरता जाता है
शहरों में ही बस नहीं उग रहे
कांक्रीट के जंगल
उनके साथ हमारे भीतर भी
कुछ पथराता सा जाता है।
रचनाकाल : 28 जून 2024
अपनी पीढ़ी के बाकी लोगों जैसे ही
मैं शहर चला तो आया था
महसूस मगर अब होता है
बस गांव नहीं मर रहे
उन्हीं के साथ हमारे मन में भी
कुछ मरता जाता है
शहरों में ही बस नहीं उग रहे
कांक्रीट के जंगल
उनके साथ हमारे भीतर भी
कुछ पथराता सा जाता है।
रचनाकाल : 28 जून 2024
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