विरासत का संबल
कभी-कभी जब चिंता से
बेहद व्याकुल हो जाता हूं
आती पुरखों की याद
गुलामी में ही जिनकी जाने कितनी
मर-खप गईं पीढ़ियां
पैदा होने से मरने तक जो
यह कभी जान ही नहीं सके
आजादी कैसी होती है!
जब भी मुझको दु:ख-कष्ट
सहनसीमा के बाहर लगते हैं
ऋषि-मुनि आते हैं याद
तपस्यामय ही जिनका जीवन था
जो स्वेच्छा से अति की हद तक
काया को अपनी स्वयं तपाया करते थे।
संबल मिलता है मुझको अपने पुरखों से
तप-त्याग, धैर्य या सहनशीलता
की समृद्ध विरासत हो जिसकी इतनी
दु:ख-कष्टों से वह कैसे घबरा सकता है
चिंता से वह कैसे व्याकुल हो सकता है!
रचनाकाल : 20 जून 2024
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