ईश्वरेच्छा बलीयसी
जब खुद पर मेरा नहीं नियंत्रण था कोई
मैं आज सोच कर रह जाता हूं कांप
कि पूरी हो जातीं यदि इच्छाएं तो क्या होता?
रस्सी के भ्रम में बच्चा जैसे
सांप पकड़ लेने की इच्छा रखता है
मेरी भी ख्वाहिश सुधा समझ
विष को पीने जैसी ही थी
अहसान इसलिये ईश्वर का
मुझ पर तो इतना ज्यादा हैै
मैं कभी उऋण हो ही सकता हूं नहीं
कि इच्छा के विरुद्ध जाकर भी उसने मेरी
मुझको नीचे गिरने से कई बार बचाया है।
वरदान मांगने का मुझको
मौका यदि कभी मिलेगा तो
मैं यही मांगना चाहूंगा
जिसका खुद पर हो नहीं नियंत्रण यदि पूरा
हे ईश्वर तू उसकी कोई
इच्छा न कभी पूरी करना
कितना भी कोसें हम मनुष्य तुझको लेकिन
जो लगे हमारी खातिर ठीक वही करना।
रचनाकाल : 17 मई 2024
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