दु:ख-कष्टों का आनंद


सब सुविधाओं के बीच, बैठ रमणीक स्थलों पर
लगता तो है आसान बहुत कविता लिखना
हसरत लेकिन यह होती है
आपाधापी के बीच, शोरगुल में रहकर
जीवन जैसा जीते हैं हरदम आम लोग
वैसा ही जीकर, फिर भी कुछ लिख सकूं अगर
सुख अनुपम मिल पायेगा कवि कहलाने में।

पर्वत शिखरों के बीच लगाना ध्यान
जिंदगी निरासक्त होकर जीना, मुझको आकर्षित करता है
जीवन के कोलाहल में पर, दुश्चिंताओं के बीच
लगा पाऊं कुछ पल को ध्यान, हो सकूं अनासक्त
कोशिश में ही मैं हरदम इसकी रहता हूं।

सुंदर लगते हैं फूल मुझे, पर कभी तोड़ता नहीं उन्हें
छूने से भी चोटिल वे हो जायेंगे, यह डर लगता है
सुख भी ऐसे ही सुखकर तो लगते हैं पर
मैं नहीं भोगता उन्हें कि इससे 
मैला उनके होने का भय लगता है।
रचनाकाल : 9 मई 2024

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