अज्ञात का रोमांच


डर लगता था पहले मुझको
अनजानी सारी चीजों से
हर चीज चाहता था कि सुनिश्चित
पहले से करके रख लूं
संभावित सारी बाधाएं कर दूर
सुरक्षित जीवन यह सारा कर लूं।
पर होते ही सारी चिंताएं दूर
नहीं रह गया कोई रोमांच
जिंदगी बोझिल लगने लगी
काटना एक-एक दिन दूभर होने लगा
इसलिये मैंने फिर से
आमंत्रित कर लिया जोखिमों-खतरों को।
भयभीत नहीं होता हूं अब बाधाओं से
कर लेता सारी चुनौतियां स्वीकार
जिंदगी में बढ़ता ही जाता है रोमांच
नजरिया जबसे बदल लिया मैंने
जिन चीजों में पहले होता दु:ख-कष्ट
उन्हीं में सुख अब अनुपम मिलता है।
रचनाकाल : 7 मई 2024

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