दर्द और सृजन
जब दर्द तेज होने लगता है सीने में
मैं लिखना करके बंद शीघ्र
करने लगता आराम
ताकि जा सकूं जरा सा दूर
मौत की घाटी से।
दरअसल दर्द के बिना
नहीं मैं कविता लिख पाता हूं
डरता तो हूं यदि यह
हुआ जरा सा भी ज्यादा
तो ले सकता है जान
मगर जब-जब इससे
मैं जाने लगता दूर
खत्म होने लगती है उर्वरता
सुख करने लगता है बंजर
इसलिए स्वयं ही जानबूझकर
लेता हूं मैं मोल दर्द
जिस तरह तार ढीला हो तो
सुर नहीं निकलता मधुर
टूट जाता है ज्यादा कसने पर
मैं भी रहकर कुछ दूर
मृत्यु के ही कगार पर
अच्छी-अच्छी कविताएं लिख पाता हूं।
रचनाकाल : 3 अप्रैल 2024
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