अपने हिस्से का काम
सब कहते हैं मैं किसी फैक्टरी के जैसे
कविताओं का उत्पादन करता जाता हूं
मुझको तो लेकिन कम ही फिर भी लगती हैं
होता है यह अफसोस कि आखिर रोज-रोज
नित नयी नहीं क्यों कविताएं लिख पाता हूं।
लगता है सबको कोई मैंने खोज लिया है राजमार्ग
जिसके ऊपर से बड़े मजे से सरपट भागा जाता हूं
मुझको पर लीक पकड़कर चलना आता ही है नहीं
निकल पड़ता अज्ञात दिशा में
राहें नई स्वयं ही पदचिन्हों से बनती जाती हैं।
है समय नहीं इतना भी मेरे पास
कि मुड़कर देखूं पीछे कितना सारा काम किया
करती बैठेंगी मूल्यांकन आगे आने वाली सदियां
मैं तो बस चिरनिद्रा में हो जाने से पहले लीन
काम अपने हिस्से का ज्यादा से ज्यादा निपटाता जाता हूं।
रचनाकाल : 18 अप्रैल 2024
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