सहनशक्ति और नम्रता


ईश्वर से जब मैं जिद करके
जबरन अपनी इच्छा पूरी करवाता था
पछताना पड़ता था आगे कई बार
नहीं परिणाम सहज-स्वाभाविक उसका आता था।
इसलिये कठिन से कठिन परिस्थिति में भी अब
पहले सी नहीं मनौती माना करता हूं
करता हूं यही प्रार्थना बस मैं हे ईश्वर
जिसमें भी लगे भलाई तुमको मेरी
मेरे हिस्से में निर्धारित वह करते जाना
बस इतना करना, जब भी देना
कष्ट कभी घनघोर
उसे सहने की क्षमता भी देना
सुख देना जब कुछ ज्यादा ही
नम्रता साथ में इतनी कर देना प्रदान
अभिमान न आने पाये मन में
यह न समझने लगूं
कि यह सब है मेरा अधिकार
सदा ही बना रहे यह भान
कि सुख के बाद हमेशा दु:ख
या दु:ख के बाद हमेशा सुख
आता और जाता है।
रचनाकाल : 2 अप्रैल 2024

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