अधूरा सच


वे लोग बहुत ही भोले थे
जो कर लेते थे भूत-प्रेत या जिन्नों पर विश्वास
उन्हें समझाता था कह इसे अंधविश्वास
मगर यह सन्न रह गया देख कि जो हैं पढ़े-लिखे
जिनको लगता कोई है नहीं अदृश्य शक्ति
वे बुरी तरह करते हैं दोहन धरती के संसाधन का।
मैं नहीं चाहता लोग रहें अज्ञानी
लेकिन अधकचरा यह ज्ञान कर रहा है इतना नुकसान
कि इससे बेहतर तो अज्ञानीपन ही लगता है!

है मुझे पता क्यों ऋषि-मुनियों ने
पर्वत शिखरों पर ही सारे देवस्थान बनाये थे
तुलसी-पीपल को पूजनीय माना
कि बहाने इसके पर्यावरण हो सके संरक्षित
नदियों को पावन कहा कि कोई करे प्रदूषित नहीं उन्हें
जो नहीं पहुंच पायें विचार के उच्च शिखर पर
वे भी पर्वत-जंगल सबको देव मान
कर सकें प्रकृति का संवर्धन।

इसलिये बहाने चाहे जिस
जो पर्यावरण बचाते हैं
करते हैं पत्थर की पूजा
उनके मन का विश्वास तोड़ता नहीं
जिन्हें है पता कि ईश्वर का दैहिक अस्तित्व नहीं
उनको कोशिश करता हूं पूरी सच्चाई बतलाने की।
जो नहीं जानते कुछ भी या फिर जिन्हें पता है सबकुछ
उनसे तो रहता निश्चिंत मगर
जिनको है पता अधूरा सच, मुझको उनसे डर लगता है।
रचनाकाल : 5-6  फरवरी 2024

Comments

  1. बहुत प्रभावी रचना 💐🙏🏻

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