भय जहं होय न प्रीति - 2


लगता था पहले मुझे
कि पशुबल ही करता है राज समूची दुनिया में
जंगल का हो कानून
लड़ाई या हो हम इंसानों की
ताकतवर ही तो सदा जीतता दिखता है!
पर जब से चलना शुरू किया
उन लोगों के आदर्शों पर
मानवता को जिन लोगों ने
उच्चतम शिखर पर पहुंचाया
अहसास हुआ भय जहां कहीं भी होता है
हो सकती हर्गिज प्रीति वहां पर नहीं कभी।
तब से ही डरना छोड़ दिया
निर्भय रहता हर हालत में
लोगों से भी निर्भय होने को कहता हूं
जो डर के मारे आदर पहले करते थे
पर गाली अपने आगे देते रहते थे
तारीफ पीठ के पीछे अब वे करते हैं
ताकतवर हैं जो बाहर से
वे भी अब मेरे मन की शक्ति समझते हैं
पशुबल करता है राज समूची दुनिया में
पर मन का बल ही सब लोगों के
मन पर शासन करता है।
रचनाकाल : 1  फरवरी 2024

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