प्रतिकार
होती है बेहद पीड़ा
जब कोई मुझ पर
झूठा आरोप लगाता है
कोशिश करता था पहले
दोषारोपण करनेवाले को समझाने की
पर सन्न रह गया देख
कि उसको रहता है सब पता
मुझे आहत करने को जानबूझ कर
वह प्रपंच फैलाता है!
तब से बस चुप ही रहता हूं
सह लेता हूं चुपचाप सभी हमलों को
होता जाता हूं क्षत-विक्षत
सूझता नहीं तरीका और दूसरा
हमलावर का मत परिवर्तित करने का।
रचनाकाल : 24 जनवरी 2024
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