प्राकृतिक जीवन


जब नहीं समझता था संकेत प्रकृति के
ईश्वर से अपनी इच्छाओं को
पूरा करने की अक्सर ही जिद करता था
बचकानेपन की हद थी
बारिश होती जब घनघोर
परीक्षा लेने खातिर
ईश्वर मेरी बात मानता है कि नहीं
बरसात बंद कर दे तुरंत
बेतुकी मांग यह करता था
जब रुक जाता था पानी
तब ईश्वर को अपना मित्र मान
बेहद प्रसन्न हो जाता था।
अब जान गया हूं ईश्वर की सहृदयता
वह जो भी करता है
हरदम अच्छे की ही खातिर करता है
इसलिये समझने की कोशिश
करता उसके संकेतों को
अपनी इच्छा से नहीं, प्रकृति की इच्छा से
जीने की कोशिश करता हूं
जीवन को कृत्रिम बनाने की इच्छाओं ने
नुकसान बहुत पहुंचाया है।
रचनाकाल : 2-3 जनवरी 2024

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