मुखौटा
मैं तो न कभी था बेइमान
सच था स्वभाव में ही हरदम
पर झूठे लोगों ने मुझको ही
सच का ओढ़ मुखौटा, झूठा बना दिया!
पहचान छीन ली मेरी
घर पर आये थे जो बन करके मेहमान
मुझे ही बेघर करके
अपना कब्जा जमा लिया!
जो थे स्वभाव से हिंस्र, जंगली
उनसे कुछ उम्मीद न थी
पर काम वही आये हैं आड़े वक्त
शरीफों ने ही मुझसे दगा किया।
रचनाकाल : 23 जनवरी 2024
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