नजरिया



पहले अक्सर ही हो जाता था परेशान
खामी मुझको सारी चीजों में दिखती थी
होते ही एक समस्या हल तैयार दूसरी मिलती थी
लेकिन जब झांका अपने मन के भीतर तो
खामी की जड़ आ गई पकड़ में
मैंने अपना दृष्टिकोण ही बदल लिया
जो जैसा है वैसा ही अब करके उसको स्वीकार
वहीं से अच्छाई के पथ पर बढ़ने
खातिर प्रेरित करता हूं
तुलना ही करता नहीं कभी
अच्छाई और बुराई की
यह समझ गया हूं खोजूंगा यदि
निष्कलंक सम्पूर्ण कोई इंसान अगर
तो कभी नहीं मिल पायेगा
इसलिये लचीलापन रखता
इतना ज्यादा अपने भीतर
झंझावातों में झुकना चाहे
जितना ज्यादा पड़े मगर
दीपक की लौ की तरह दिशा
हरदम ऊपर ही रखता हूं
कितनी भी बुरी परिस्थिति हो
आशावादी ही रहता हूं
हर एक आपदा में अवसर
अब मुझे दिखाई पड़ता है।
रचनाकाल : 16 जनवरी 2024

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