समय
जब मन अशांत रहता था
कविता लिखना करके स्थगित
समय अच्छा आने का
इंतजार बस करता था।
इस चक्कर में ही समय मगर
मैंने कितना ही गंवा दिया
अब बुरे समय को ही अच्छे में
परिवर्तित करने की कोशिश करता हूं
कितनी भी हो प्रतिकूल परिस्थिति
अच्छाई से जोंक की तरह
हरदम चिपटा रहता हूं
यह समझ गया हूं समय नहीं
होता अच्छा या बुरा
हमीं अपने कर्मों से ही उसको
अच्छा या बुरा बनाते हैं
जीवन सबको मिलता है एक समान
प्रतीक्षा में अनुकूल समय की
हम जो रोज गंवाते जाते हैं
उतने ही दिन में महापुरुष
कायम मिसाल कर जाते हैं।
रचनाकाल : 9-14 जनवरी 2024
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